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तुम धरती स्वीकार करते हो<br>
 
विजित करते हो जनपद पर जनपद<br>
 
विजित करते हो जनपद पर जनपद<br>
 
लेकिन अज्ञान,निर्धनता और बीमारी के ही तो राजा हो<br><br>
 
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गीत नहीं कोई किस्‍सा मजाक सुना रही हैं-<br>
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राज थक गए हैं<br>
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राजा थक गए हैं<br>
 
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उनका घोड़ा बूढा दार्शनिक हो चला अब<br>
उन्‍हें सिर्फ राजधानी के परकोटे में ही<br>
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उन्हें सिर्फ़ राजधानी के परकोटे में ही<br>
 
अपना चाबुक फटकारते हुए घूमना चाहिए<br><br>
 
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राजधानी में खानसामे तक सुनाते हैं<br>
 
राजधानी में खानसामे तक सुनाते हैं<br>
 
रसोई में महायुद्धों की चटपटी
 
रसोई में महायुद्धों की चटपटी

00:08, 4 सितम्बर 2008 का अवतरण

अचानक सब कुछ हिलता हुआ थम गया है
भव्य अश्वमेघ के संस्कार में
घोड़ा ही बैठ गया पसरकर
अब कहीं जाने से क्या लाभ ?

तुम धरती स्वीकार करते हो
विजित करते हो जनपद पर जनपद
लेकिन अज्ञान,निर्धनता और बीमारी के ही तो राजा हो

लौट रही हैं सुहागिन स्त्रियाँ
गीत नहीं कोई किस्सा मज़ाक सुना रही हैं-
राजा थक गए हैं
उनका घोड़ा बूढा दार्शनिक हो चला अब
उन्हें सिर्फ़ राजधानी के परकोटे में ही
अपना चाबुक फटकारते हुए घूमना चाहिए

राजधानी में सब कुछ उपलब्ध है
बुढापे में सुंदरियाँ
होटलों की अंतर्महाद्वीपीय परोसदारियाँ

राजधानी में खानसामे तक सुनाते हैं
रसोई में महायुद्धों की चटपटी