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रात भर / मुनेश्वर ‘शमन’

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आझ छत पर चाननी फिन झिलमिलइलक रात भर।
तूँ नञ अइला, मुदा तोहर इयाद अइलक रात भर।

कोय मद मातल महक आ गेल बिस्तर पर पसर।
अइसें रूठल नीन, कि ऊ फेर न अइलक रात भर।

सूतल सब अरमान के रह-रह के छेड़ऽ हइ हवा।
जगल आसा रहिया में अँखिया बिछइलक रात भर।

मदिर रस बरसल तऽ जिनगी काँच समिधा-सन जरल।
पीर सानल गीत हमर पिरीत गइलक रात भर।

अब अकेले तो सहल नञ जाहे खुसबू के जुलुम।
बुझाबऽ आके अगन, ई रितु लगइलक रात भर।