"रात भी नींद भी, कहानी भी / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
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जख़्में-पिनहाँ५ की है निशानी भी। | जख़्में-पिनहाँ५ की है निशानी भी। | ||
− | + | ख़ल्क़६ क्या-क्या मुझे नहीं कहती | |
कुछ सुनूँ मैं तेरी ज़बानी भी। | कुछ सुनूँ मैं तेरी ज़बानी भी। | ||
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मौत के दौरे-दरम्यानी भी। | मौत के दौरे-दरम्यानी भी। | ||
− | + | अपनी मासूमियों के पर्दे में | |
+ | हो गयी वो नज़र सियानी भी। | ||
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+ | दिन को सूरजमुखी है वो नौगुल | ||
+ | रात को है वो रातरानी भी। | ||
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+ | दिले - बदनाम तेरे बारे में | ||
+ | लोग कहते हैं इक कहानी भी। | ||
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+ | वज़्अ७ करते कोई नयी दुनिया | ||
+ | कि ये दुनिया हुई पुरानी भी। | ||
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+ | दिल को आदाबे-बन्दगी८ भी न आये | ||
+ | कर गये लोग हुक्मरानी भी। | ||
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+ | जौरे - कमकम का शुक्रिया बस है | ||
+ | आपकी इतनी मेह्रबानी भी। | ||
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+ | दिल में इक हूक भी उठी ऐ दोस्त | ||
+ | याद आयी तेरी जवानी भी। | ||
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+ | सर से पा तक सिपुर्दगी की अदा | ||
+ | एक अंदाजे-तुर्कमानी९ भी। | ||
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+ | पास रहना किसी का रात की रात | ||
+ | मेहमानी भी मेज़बानी भी। | ||
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+ | हो न अक्से - जबीने - नाज़ कि है | ||
+ | दिल में इक नूरे - कहकशानी भी। | ||
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+ | ज़िन्दगी ऐन दीदे - यार ’फ़िराक़’ | ||
+ | ज़िन्दगी हिज्र की कहानी भी। | ||
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+ | शब्दार्थः | ||
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+ | १- नाराज़गी, २- दिल का काम, ३- आन्तरिक दुख, ४- दुखी हृदय की सीमा, ५- आन्तरिक आहत, ६- दुनिया, ७- बनाते, ८- सेवाभाव, ९- तुर्को की अदा। | ||
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22:41, 29 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
रात भी नींद भी कहानी भी
हाय, क्या चीज है जवानी भी
एक पैग़ामे-ज़िन्दगानी भी
आशिक़ी मर्गे-नागहानी भी।
इस अदा का तेरे जवाब नहीं
मेह्रबानी भी सरगरानी१ भी।
दिल को अपने भी ग़म थे दुनिया में
कुछ बलायें थीं आसमानी भी।
मनसबे - दिल२ ख़ुशी लुटाना है
ग़मे-पिनहाँ३ की पासबानी भी।
दिल को शोलों से करती है सेराब
ज़िन्दगी आग भी है पानी भी।
शादकामों को ये नहीं तौफ़ीक़
दिले ग़मग़ीं की शादमानी भी।
लाख हुस्ने-यक़ीं से बढ़कर है
उन निगाहों की बदगुमानी भी।
तंगना-ए-दिले-मलूल४ में है
बह्रे-हस्ती की बेकरानी भी।
इश्क़े-नाकाम की है परछाईं
शादमानी भी, कामरानी भी।
देख दिल के निगारखाने में
जख़्में-पिनहाँ५ की है निशानी भी।
ख़ल्क़६ क्या-क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूँ मैं तेरी ज़बानी भी।
आये तारीख़े-इश्क़ में सौ बार
मौत के दौरे-दरम्यानी भी।
अपनी मासूमियों के पर्दे में
हो गयी वो नज़र सियानी भी।
दिन को सूरजमुखी है वो नौगुल
रात को है वो रातरानी भी।
दिले - बदनाम तेरे बारे में
लोग कहते हैं इक कहानी भी।
वज़्अ७ करते कोई नयी दुनिया
कि ये दुनिया हुई पुरानी भी।
दिल को आदाबे-बन्दगी८ भी न आये
कर गये लोग हुक्मरानी भी।
जौरे - कमकम का शुक्रिया बस है
आपकी इतनी मेह्रबानी भी।
दिल में इक हूक भी उठी ऐ दोस्त
याद आयी तेरी जवानी भी।
सर से पा तक सिपुर्दगी की अदा
एक अंदाजे-तुर्कमानी९ भी।
पास रहना किसी का रात की रात
मेहमानी भी मेज़बानी भी।
हो न अक्से - जबीने - नाज़ कि है
दिल में इक नूरे - कहकशानी भी।
ज़िन्दगी ऐन दीदे - यार ’फ़िराक़’
ज़िन्दगी हिज्र की कहानी भी।
शब्दार्थः
१- नाराज़गी, २- दिल का काम, ३- आन्तरिक दुख, ४- दुखी हृदय की सीमा, ५- आन्तरिक आहत, ६- दुनिया, ७- बनाते, ८- सेवाभाव, ९- तुर्को की अदा।