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रात में वर्षा / प्रयाग शुक्ल

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गड़गड़ाते हुए

बादल

पेड़ तक, घर तक ।

हवा को भेजते

दर-दर ।

इधर, इस ओर

बिस्तर तक

जगा है--

चौंक कर ।

यह एक

बिजली-कौंध,

भीतर तक

उतर कर,

कहाँ जाने गई ।

ऊपर गड़गड़ाहट

गड़गड़ाहट

और कितनी !


तनी

साँसें

सुन रही हैं वृष्टि

अब भरपूर ।