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राधेश्याम - लेख भागवत सुखसागर का / प.रघुनाथ

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दोहा-
कथा आरम्भ होत है, करो बजरंग प्रकाश।
श्री कृष्ण भगवान का, लिखूं जन्म इतिहास।।

दौड़/राधेश्याम/वार्ता/सरड़ा/जकड़ी :-
लेख भागवत सुखसागर का, वेदव्यास कवि लिखते हैं।
जिसके पढऩे या सुनने से, भगत लोग ना छिकते हैं।।
कंस का चाचा देवक था, देवकी उसकी पुत्री थी।
चौदह वर्ष की आयु हुई, रंग रूप देह की सुथरी थी।।
दरबार कंस का लगा हुआ, और देवकी का वहां जिक्र हुआ।
कुंवारी सुता सिवासण घर पै, न्यूं देवक को फिक्र हुआ।।
उस देवक की बड़ी सुता, कान्धार देश में ब्याही थी।
शूरसेन का वासुदेव, बल बुद्धि में चतुराई थी।।
कंस ने सोचा वासुदेव पहले, बण चुका बहनोई जी।
उसको ही देवकी देंगे हम, ढूंढे ना दूसरा कोई जी।।
सबकी एक सलाह होगी, भिजवाया ब्याह देवकी का।
खुशी के मंगलाचार हुये, न्यूं बड़ा उत्साह देवकी का।।
बड़ी खुशी से बासुदेव, दूल्हा बनकर आ जाता है।
कंस खुशी के साथ आप, भैना का ब्याह रचाता है।।
नैम सतातम धर्म का जो, वेदों के मन्त्र बखाणे गये।
दान दहेज बहुत धन देके, डोला कंस पहुचाणे गये।।
संग में घोड़ा वासुदेव का, बणा सजीला ब्याहला था।
रथ में दुल्हन देवकी थी, और कंस बली गड़वाला था।।
शहर से बाहर चल करके, रथ जब खेतों में आता है।
शब्द जोर से हुआ जाणे, कोई नभ में खड़ा चिल्लाता है।।
ओ कंस देवकी बहन तेरी, तू समझ मौत तेरी होगी।
आठवां बेटा जब होगा, बलहार फौत तेरी होगी।।
सोलह कला औतार धार, भूमी ना उतारेंगे।
तेरा भाणजा तुझे मारे, जब दुष्ट लड़ाई हारेंगे।।
सुण के कांपा कंस बली, दिल धडक़ा भयभूत बणा।
तलवार म्यान से काड लई, अत्याचारी और ऊत बणा।।
केश पकड़ लिये बहना के, तलवार मारने को ठाई।
देवकी डर के रोण लगी, भाई-भाई कह चिल्लाई।।