भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कहा जटायु ने प्रभु से रावन ने सीता हरण किया |
परम भक्त प्रिय जान उसे रघुवर ने आपनी शरण लिया ||
संस्कार सब कर प्रभु ने गीध को भव से तारा है,
पुनि आगे जाकर रघुबर ने कबन्ध राक्षस मारा है |
सुग्रीव संग मित्रता की सब तरह उसे सुख साज दिया,
मारा बाली निज मित्र हेतु अरू किस्कंधा का राज दिया |
सीताजी की सुधी लेने को कपि भालू चतुर्दिक फ़ैल गये,
हनुमान वीर गये लंका में राक्षस गण कपि से दहल गये |
जाकर के सीता सुधी लीनी लंका में आग लगा दीनी,
जितने वहां राक्षस योद्धा थे सबकी शक्ति हनु हर लीनी |
कुशलानंद सीता की कही कपि सुत ने प्रभु से आकर,
लंका पर शीघ्र चढ़ाई की श्रीराम ने कपि भालू लेकर |
नल-नील आदि योद्धाओं को प्रभु ने आदेश सुनाया है,
पार किनारे जाने को वारिद पर सेतु बंधाया है |
भ्रात विभीषण रावण का रघुवीर की शरण में आया है,
लंका का राज दिया उसको निज हाथ से तिलक लगाया है |
उसी सेतु की राह राम ने लंका को घेर लिया जाकर,
कपि भालू शस्त्र सजीले थे श्री राम कृपा का बल पाकर |
<poem>
514
edits