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"राम और राम के बीच / कुमारेंद्र पारसनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

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राम और राम के बीच गायब राम ही होता है,
 
राम और राम के बीच गायब राम ही होता है,
लड़ता रह जाता है नाम उसका। भीतर से ताला
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लड़ता रह जाता है नाम उसका । भीतर से ताला
बंद कर लेता है अल्ला और ईसा बाहर सूली
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बन्द कर लेता है अल्ला और ईसा बाहर सूली
पर चढ़ता है। नदी पर बांध देने वाला घुटने भर
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पर चढ़ता है । नदी पर बान्ध देने वाला घुटने भर
पानी में डूबता है, अपने आप टूटता पहाड़ तोड़ने वाला।
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पानी में डूबता है, अपने आप टूटता पहाड़ तोड़ने वाला ।
और जो नया-नया रास्ता निकालता है,टकराता जा
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और जो नया-नया रास्ता निकालता है, टकराता जा
रहा है दिशाओं से- हदों से, रास्ता अपना बंद कर
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रहा है दिशाओं से हदों से, रास्ता अपना बन्द कर
लेता है, घुटता है मन के अंधेरे में सूरज जबकि
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लेता है, घुटता है मन के अन्धेरे में, सूरज जबकि
ठीक उसके सर पर चमकता है। आदमी जहाँ आदमी
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ठीक उसके सर पर चमकता है । आदमी जहाँ आदमी
 
नहीं रह जाता, सबसे बड़ा शत्रु पहले आदमी का
 
नहीं रह जाता, सबसे बड़ा शत्रु पहले आदमी का
होता है। वैसे आदमी कभी कम नहीं था किसी से,
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होता है । वैसे आदमी कभी कम नहीं था किसी से,
कम नहीं है। मगर आदमी, आदमी वह कहाँ है?
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कम नहीं है । मगर आदमी, आदमी वह कहाँ है ?
 
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18:01, 8 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण

राम और राम के बीच गायब राम ही होता है,
लड़ता रह जाता है नाम उसका । भीतर से ताला
बन्द कर लेता है अल्ला और ईसा बाहर सूली
पर चढ़ता है । नदी पर बान्ध देने वाला घुटने भर
पानी में डूबता है, अपने आप टूटता पहाड़ तोड़ने वाला ।
और जो नया-नया रास्ता निकालता है, टकराता जा
रहा है दिशाओं से — हदों से, रास्ता अपना बन्द कर
लेता है, घुटता है मन के अन्धेरे में, सूरज जबकि
ठीक उसके सर पर चमकता है । आदमी जहाँ आदमी
नहीं रह जाता, सबसे बड़ा शत्रु पहले आदमी का
होता है । वैसे आदमी कभी कम नहीं था किसी से,
कम नहीं है । मगर आदमी, आदमी वह कहाँ है ?