भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राम को आराध्य मानें, शंभु शिव के हम पुजारी / प्रदीप कुमार 'दीप'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:54, 8 अगस्त 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप कुमार 'दीप' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राम को आराध्य मानें, शंभु शिव के हम पुजारी।
प्राथमिकता शांति, पर हैं, पार्थ हम गांडीवधारी॥

भक्ति के भावों में खोये, शक्ति को रहते सँजोते।
है अहिंसा व्रत हमारा, पर न कायरता को ढोते॥
युद्ध के हम धुर विरोधी धर्म की खातिर अड़ें हम।
आँच मानवता पर हो तो जान जाने तक लड़ें हम॥

दानवों के वक्ष में हम घोंपते आए कटारी।
प्राथमिकता शांति, पर हैं, पार्थ हम गाँँडीवधारी॥

पापियों के सामने झुक की न हमनें याचनाएँ।
हार में ही खोजीं हमनें जीत की संभावनाएँ।
कर्म बस निस्वार्थ करना ज्ञान योगेश्वर से पाया।
धर्म के रथ हित बना अवरोध जो उसको हटाया।

होंं भले ही द्रोण गुरु या भीष्म से हों बृह्मचारी।
प्राथमिकता शांति, पर हैं, पार्थ हम गांडीवधारी॥

चुन गये दीवार में सुत धर्म हित रोये नहीं हम।
देखकर बेचैन जग को चैन से सोये नहीं हम॥
रेणुका जमदग्नि सुत की सीख हमनें कब भुलाई।
भूख से लड़कर भी लड़ते ही रहे जिद की लड़ाई॥

शास्त्र के सँग शस्त्र की भी आरती हमनें उतारी।
प्राथमिकता शांति, पर हैं, पार्थ हम गाँडीवधारी॥