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रिश्तों का उपवन इतना वीरान नहीं देखा / ओमप्रकाश यती

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रिश्तों का उपवन इतना वीरान नहीं देखा।
हमने कभी बुजुर्गों का अपमान नहीं देखा।

जिनकी बुनियादें ही धन्धों पर आधारित हैं
ऐसे रिश्तों को चढ़ते परवान नहीं देखा।

गिद्धों के ग़ायब होने की चिन्ता है उनको
हमने मुद्दत से कोई इंसान नहीं देखा।

दो पल को भी बैरागी कैसे हो पाएगा
उसका मन जिसने जाकर शमशान नहीं देखा।

दिल से दिल के तार मिलाकर जब यारी कर ली
हमने उसके बाद नफ़ा–नुक़सान नहीं देखा।