भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेत में शाम / श्रीप्रकाश शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:20, 20 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रकाश शुक्ल }} <poem> चल पड़ी नाव धीरे-धीरे फिर ...)
चल पड़ी नाव
धीरे-धीरे फिर संध्या आई
नदी नाव संयोग हुआ अब
मन में बालू की आकृतियाँ छाई
टूटा तारा
टूटी लहरें
टूटा बाट बटोही
टूट-टूट कर आगे बढ़ता
पीछे छूटा गति का टोही
चांद निराला
मुँह चमकाता
चमका-चमका कर मुँह बिचकाता
बचा हुआ जो कुछ कण था
आगे पीछे बहुत छकाता
आया तट
अब लगी नाव
लहरें हो गयी थेाड़ी शीतल
मन का मानिक एक हिराना
लहरों पर होती पल
हलचल!
रचनाकाल : 29.02.2008