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रे कुचाली / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'

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थोरे दिनवाँ ना रे कुचाली, थोरे दिनवाँ ना
जनाले आपन जारी रे, थोरे दिनवाँ ना

डाका-चोरी, छीना-छोरी, लूट-मार-हत्यारी रे
सब अबगुन आगर जनमवलस कइसन बाप मतारी रे

लुच्चा-लम्पट-लुकड़-पियक्कड़, सबके खातिरदारी रे
दुनिया भर के गुण्डन खातिर तोरे घर ससुरारी रे

तोरा घर में अड्डा मारे पुलिस, लंठ, व्याभिचारी रे
निमन सिखावन सीखत होइहें बेटा, बेटी, नारी रे

खल से प्रीति, बैर भल मन से, जनता से बरिआरी रे
देशभक्त पर, जनसेवक पर हमला, निन्दा, गारी रे

गाँव-जवार, पड़ोसा-टोला सबके दुश्मन भारी रे
जे भी आपन हक पद चिन्हे, कहिदे नक्सलवारी रे

का करिहें बन्दूक-रायफल, बडीगार्ड सरकारी रे
तोरा कुल के जरि से कोड़ी पीजल लाल कुदारी रे

रचनाकाल : 04.02.1983