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रोज मरता है सूरज, फिर भी सवेरा होता है / सांवर दइया
Kavita Kosh से
रोज मरता है सूरज, फिर भी सवेरा होता है।
जो कोई देखता इस तरह, शायर होता है।
आजकल बहुत गमगीन है सूरत जमाने की,
इस पर्त के नीचे खुशी का आलाम होता है!
सुबह-शाम रोटी को तरस रही आंखों में भी,
जब सपने उभरते, वहां ताजमल होता है!
जितना ही अधिक गहराता है रात का आंचल,
दुनिया को भोर के करीब ला रहा होता है!
भूल करेंगे खामोशी को समझ अपनी जीत,
तूफां से पहले सन्नाटा हर तरफ़ होता है!