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रोशनी जल की परी है, दीपमाला है / ऋषभ देव शर्मा
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रोशनी जल की परी है , दीपमाला है
रोशनी गिरवीं धरी है , दीपमाला है
कुर्सियों की दीप - लौ में सिंक रही रोटी
पेट की यह नौकरी है ,दीपमाला है
क्यों हँसी को छीन कर इतरा रहे हो तुम ?
आँख में लाली भरी है , दीपमाला है
दुधमुंहों के रक्त में जो स्नान कर आई
रोशनी वह मर्करी है , दीपमाला है
इन पटाखों से जलेगा यह महल ख़ुद ही
आज बागी संतरी है , दीपमाला है
अब सुरंगों में छिपा बारूद जलना है
रोशनी किससे डरी है ! दीपमाला है !!