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<center><font size=51>लंका काण्डश्रीगणेशाय नमः</font></center><br><center><font size=1>श्रीजानकीवल्लभो विजयते</font></center><br> श्री गणेशाय नमः<br>श्री जानकीवल्लभो विजयते<center><font size=6>श्रीरामचरितमानस</font></center><br>श्री रामचरितमानस<br><center><font size=4>षष्ठ सोपान</font></center><br><br>(<center><font size=5>लंकाकाण्ड)</font></center><br><br><span class="shloka">श्लोक<br>
रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं<br>
योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्।<br>
सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कर जोरि कह।<br>
नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ि भव सागर तरिहिं।।<br>
चौ0-यह लघु जलधि तरत कति बारा। अस सुनि पुनि कह पवनकुमारा।।<br>
प्रभु प्रताप बड़वानल भारी। सोषेउ प्रथम पयोनिधि बारी।।<br>
तब रिपु नारी रुदन जल धारा। भरेउ बहोरि भयउ तेहिं खारा।।<br>
आनि देहिं नल नीलहि रचहिं ते सेतु बनाइ।।1।।<br>
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चौ0-सैल बिसाल आनि कपि देहीं। कंदुक इव नल नील ते लेहीं।।<br>
देखि सेतु अति सुंदर रचना। बिहसि कृपानिधि बोले बचना।।<br>
परम रम्य उत्तम यह धरनी। महिमा अमित जाइ नहिं बरनी।।<br>