भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लगा कि अब तेरी बाँहों में कोई और भी है / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:19, 9 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लगा कि अब तेरी बाँहों में कोई और भी है
हमीं हों दिल में, निगाहों में कोई और भी है

ये कौन रात तड़पता रहा है काँटों पर!
निशान फूल की राहों में कोई और भी है

जवाब जिसका नहीं आज तक हुआ मालूम
सवाल उनकी निगाहों में कोई और भी है

पता नहीं कि उधर बेबसी में क्या गुज़री!
शरीक दिल के गुनाहों में कोई और भी है

ख़बर किसे है, हवाओं के मन में क्या है, गुलाब!
छिपा बहार की छाँहों में कोई और भी है