भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लतर / वास्को पोपा / सोमदत्त
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:49, 1 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वास्को पोपा |अनुवादक=सोमदत्त |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सबसे छरहरी बेटी
हरे भूमिगत सूरज की
बच निकलेगी वो
दीवाल की सफ़ेद दाढ़ी से
तन खड़ी होगी उठाए सिर भरे बाज़ार
बगराती अपना रूप
अपने सर्पनृत्य से
मोहेगी तूफ़ानी हवाओं को
लेकिन चौड़े कन्धों वाला पवन
नहीं देता उसे अपनी बाँह
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोमदत्त'