भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाल रंग बरसत चारों ओर / शिवदीन राम जोशी

Kavita Kosh से
Kailash Pareek (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:45, 3 फ़रवरी 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाल रंग बरसत चारों ओर।
नंदगोपाल राधिका जय-जय, नांचे नंद किशोर।
वृंदावन बृजधाम धाम में, शुभ वसंत बस रही श्याम में,
हरियाली छाई मनमोहन, देखो तो हर ठौर।
वृजबाला गोपी व गवाला, रंग रंग का ओढ़ दुसाला,
यमुना तट पर गायरहे सब, होकर प्रेम विभोर।
लहरों में श्यामा लहराई, बंसी श्यामा श्याम बजाई,
कहे शिवदीन रसिक जन साधू, मधुरे बोले मोर।
रंग गुलाल उडाने वारे, श्रीराधा के हो तुम प्यारे,
पूरण ब्रह्म रसिला कृष्णा, मन मोहक चित चोर।