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लावे की नदी / बालस्वरूप राही

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लावे की नदी उमड़ आई है
सुना नहीं
बच्चों को कमरे में बन्द रखो

बच्चे ये जिन्हें तितलियाँ बुलाती हैं
बच्चे ये जिन्हें अभी सीपियाँ लुभाती हैं
जिन्हें अभी इंद्रधनुष बहुत पास लगता है
परियों का स्वप्न मुंदी आंखों में जगता है।

लाँघ गये देहरी तो देह झुलस जायेगी
 कम से कम इन पर
 प्रतिबंध रखो।

बाहर अब जुगनू या मोरपंख नहीं रहे
लपटों की धारा में वन उपवन नगर बहे
भूखे हैं हिरन कहीं मिल पाती दूब नहीं
झुलस गये कमल, हंस पाँखें सुकुमार दहीं।

दुर्लभ हो जायेगा कुछ ही दिन में
इसीलिए
जितना भी हो पाए संचित मकरन्द रखो।

पिघला इस्पात उफन आया गलियारों में
बंदी वह रह न सका यन्त्र के कगारों में
पीतबरन क्षितिज अरुणबरन हैं दिशाएं
दृश्यों को ढांप रहीं सांवली हवाएं।

ऐसे में जैसे भी हो पाए
जीवित कुछ शुकपाँखी छंद रखो
बन्द रखो
बच्चों को कमरे में।