भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिखलहुँ गीत आइ धरि जतबा / धीरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लिखलहुँ गीत आइ धरि जतबा,
तोरहिटा उद्वेग में !
हेरा गेल हे हम्मर धरती !
तोरहिटा आवेग मे !!
दिग्-दिगन्तमे देखि रहल छी
तोरेटा अनुहार हम !
दुलखैत जनु धूमि रहल छी
हियकेर बतहा भार हम !
लोक कहै अछि एना करै छह
व्यर्थ अनेरे सोच की !
निर्मम जाहि देश केर मालिक
ताहि भूमिकेर रोच की ?
मुदा मनावी कोना मोनकें
जे डूबल आवेग में ??
लिखलहुँ गीत आइ धरि जतबा तोरहिटा उद्वेगमे।