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"लिख दिया अपने दर पे किसी ने इस जगह प्यार करना मना है / क़तील" के अवतरणों में अंतर

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लिख दिया अपने दर पे किसी ने<br />
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लिख दिया अपने दर पे किसी ने, इस जगह प्यार करना मना है<br>
इस जगह प्यार करना मना है
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प्यार अगर हो भी जाए किसी को, इसका इज़हार करना मना है
  
प्यार अगर हो भी जाए किसी को<br />
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उनकी महफ़िल में जब कोई आये, पहले नज़रें वो अपनी झुकाए<br>
इसका इज़हार करना मना है
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वो सनम जो खुदा बन गये हैं, उनका दीदार करना मना है
  
उनकी महफ़िल में जब कोई आये<br />
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जाग उठ्ठेंगे तो आहें भरेंगे, हुस्न वालों को रुसवा करेंगे<br>
पहले नज़रें वो अपनी झुकाए
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सो गये हैं जो फ़ुर्क़त के मारे, उनको बेदार करना मना है
  
वो सनम जो खुदा बन गये हैं<br />
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हमने की अर्ज़ ऐ बंदा-परवर, क्यूँ सितम ढा रहे हो यह हम पर<br>
उनका दीदार करना मना है
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बात सुन कर हमारी वो बोले, हमसे तकरार करना मना है
  
जाग उठ्ठे तो आहें भरेंगे<br />
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सामने जो खुला है झरोखा, खा न जाना क़तील उसका धोखा<br>
हुस्न वालों को रुसवा करेंगे
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अब भी अपने लिए उस गली में, शौक-ए-दीदार करना मना है
 
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सो गये हैं जो फुरक़त के मारे<br />
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उनको बेदार करना मना है
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बात सुन कर हमारी वो बोले<br />
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हमसे तकरार करना मना है
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सामने जो खुला है झरोखा<br />
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खा न जाना क़तील कहीं उनका धोखा
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अब भी अपने लिए उस गली में<br />
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शौक-ए-दीदार करना मना है
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17:14, 20 फ़रवरी 2010 का अवतरण

लिख दिया अपने दर पे किसी ने, इस जगह प्यार करना मना है
प्यार अगर हो भी जाए किसी को, इसका इज़हार करना मना है

उनकी महफ़िल में जब कोई आये, पहले नज़रें वो अपनी झुकाए
वो सनम जो खुदा बन गये हैं, उनका दीदार करना मना है

जाग उठ्ठेंगे तो आहें भरेंगे, हुस्न वालों को रुसवा करेंगे
सो गये हैं जो फ़ुर्क़त के मारे, उनको बेदार करना मना है

हमने की अर्ज़ ऐ बंदा-परवर, क्यूँ सितम ढा रहे हो यह हम पर
बात सुन कर हमारी वो बोले, हमसे तकरार करना मना है

सामने जो खुला है झरोखा, खा न जाना क़तील उसका धोखा
अब भी अपने लिए उस गली में, शौक-ए-दीदार करना मना है