भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ली गई थी जो परीक्षा वो बड़ी भारी न थी /वीरेन्द्र खरे अकेला

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:47, 12 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=शेष बची चौथाई रात /…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ली गई थी जो परीक्षा वो बड़ी भारी न थी
हाँ मगर उसके लिए पहले से तैयारी न थी

हाँ ये सच है गालियाँ खाकर भी मैं ख़ामोश था
बेवकूफों से उलझने में समझदारी न थी

दर्द का मरूथल ही फैला दीखता था हर तरफ़
उसके जीवन की धरा पर कोई फुलवारी न थी

पिछले हफ़्ते बेच दी मैंने कलाई की घड़ी
घर में थे मेहमान उस दिन और तरकारी न थी

दोस्तो होना ही था उसको सियासत में विफल
सीधा-सादा आदमी था उसमें मक्कारी न थी

कौन आया था वहाँ मेरी मदद के वास्ते ?
उस मुहल्ले में भला किससे मेरी यारी न थी


तोड़ डाला था ‘अकेला’ उनको तेरी फ़िक्र ने
उनके यूँ जाने का कारण कोई बीमारी न थी