भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लुंपेन का गीत / नवारुण भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:42, 31 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवारुण भट्टाचार्य |संग्रह=यह मृत्यु उपत्यका नह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKCatPoem

हर रात हमारी जुए में
कोई न कोई जीत लेता है चाँद
चाँद
 को तुड़वा कर हम खुदरे तारे बना लेते हैं

हमारी जेबें फटी हैं
उन्हीं छेदों से सारे तारे गिर जाते हैण
उड़कर चले हैं आकाश में

तब नींद आती है हमारी ज़र्द आँखों में
स्वप्न के हिंडोले में हम काँपते हैं थर-थर
हमें ढोते हुए चलती चली जाती है रात
रात जैसे एक पुलिस की गाड़ी.