भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लेकर हम दीवाना दिल / मजरूह सुल्तानपुरी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:51, 22 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मजरूह सुल्तानपुरी }} {{KKCatGeet}} <poem> लेकर ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लेकर हम दीवाना दिल
फिरते हैं मंज़िल मंज़िल
कहीं तो प्यारे किसी किनारे
मिल जाओ तुम अंधेरे उजाले
तरम पम
लेकर हम दीवाना दिल
फिरते हैं मंज़िल मंज़िल

जिस गली में तुम उस गली में हम
फिर भी ये दूरियाँ यहाँ
तुम यहीं कहीं हम यहीं कहीं
पर ये मजबूरियाँ यहाँ
वाह रे दुनिया दुनिया तेरे जलवे हैं निराले
ह आ
लेकर हम दीवाना दिल
फिरते हैं मंज़िल मंज़िल

तू कहीं रहे यूँ लगे मुझे
मेरे दिल के पास है यहाँ
माँगूं तेरी ख़ैर आ तेरे बग़ैर
दिल मेरा उदास है यहाँ
आजा आजा आजा हमको सीने से लगा ले
ह आ
लेकर हम दीवाना दिल
फिरते हैं मंज़िल मंज़िल

कहीं तो प्यारे किसी किनारे
मिल जाओ तुम अंधेरे उजाले
तरम पम
लेकर हम दीवाना दिल
फिरते हैं मंज़िल मंज़िल