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"लोग उसे सोना-चाँदी देते हैं / अमृता भारती" के अवतरणों में अंतर

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22:23, 25 मार्च 2010 के समय का अवतरण

लोग उसे सोना-चांदी देते हैं :

वह चुपचाप उनके भूबन्द कमरों में जाता है
लोहे की दीवारों पर
आकाश का छोटा-सा टुकड़ा चिपकाता है
उसके पाँव डालने से
सोने का काला दरिया हिलता है
सर्प सबकी पी अग्नि को अगलता है,

सब अपनी सम्पत्ति उसे देने आते हैं :
किसान अपने खेत और
माली बग़ीचे रख जाते हैं
ग़रीब दे जाता है अपनी भूख
मज़दूर अपना पसीना रख जाता है
सैनिक रखता है अपनी तलवार
शूर अपना पराक्रम छोड़ जाता है
चोर लाते हैं चोरी का माल
वेश्या अपना भीगा हुआ अधोवस्त्र दे जाती है
कोढ़ी दे जाता है अपनी फफूंद
बीमार अपनी खाट छोड़ जाता है।

वह अपने वक्ष पर हाथ रख कहता है :
'इधर केवल ईश्वर ही आता है।'