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"लौ-ए-दिल जला दूँ क्या / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर
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नक्श-ए-जाँ ए जाना ना | नक्श-ए-जाँ ए जाना ना | ||
नक्श-ए-जाँ मिटा दूँ क्या | नक्श-ए-जाँ मिटा दूँ क्या | ||
− | मुझ को लिख के | + | मुझ को लिख के ख़त जानम |
अपने ध्यान में शायद | अपने ध्यान में शायद | ||
− | + | ख़्वाब-ख़्वाब जज़्बों के | |
− | + | ख़्वाब-ख़्वाब लम्हों में | |
− | यूँ ही | + | यूँ ही बेख़याल आना |
− | और | + | और ख़याल आने पर |
मुझ से डर गई हो तुम | मुझ से डर गई हो तुम | ||
− | + | जुर्म के तस्सवुर में | |
− | गर ये | + | गर ये ख़त लिखे तुमने |
फिर तो मेरी राय में | फिर तो मेरी राय में | ||
− | + | जुर्म ही किये तुमने | |
− | + | जुर्म क्यों किये जाएँ | |
− | + | जुर्म हो तो | |
− | + | ख़ | |
+ | त ही क्यों लिखे जाएँ | ||
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10:03, 1 अगस्त 2010 का अवतरण
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लौ-ए-दिल जला दूँ क्या
कहकशाँ लुटा दू क्या
है सवाल इतना ही
इनका जो भी मुद्दा है
मैं उसे गवाँ दू क्या
जो भी हर्फ है इनका
नक्श-ए-जाँ ए जाना ना
नक्श-ए-जाँ मिटा दूँ क्या
मुझ को लिख के ख़त जानम
अपने ध्यान में शायद
ख़्वाब-ख़्वाब जज़्बों के
ख़्वाब-ख़्वाब लम्हों में
यूँ ही बेख़याल आना
और ख़याल आने पर
मुझ से डर गई हो तुम
जुर्म के तस्सवुर में
गर ये ख़त लिखे तुमने
फिर तो मेरी राय में
जुर्म ही किये तुमने
जुर्म क्यों किये जाएँ
जुर्म हो तो
ख़
त ही क्यों लिखे जाएँ