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वक़्त मिला है चलो सियें कुछ यादें फटी पुरानी / ओम प्रकाश नदीम

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वक़्त मिला है चलो सीएँ कुछ यादें फटी पुरानी
जी लें सुब्हे बनारस कुछ पल शामे अवध सुहानी

रोज़ हुॅंकारी भरकर आधी सुनकर सो जाता था
अगले दिन पापा गढ़ लेते थे फिर कोई कहानी

कोल्ड ड्रिंक का भूत मुनाफ़े का प्यासा है इतना
पी न जाए ये चौक की ठण्डाई की साख पुरानी

हमें किताबों से मुहावरे पढ़ने नहीं पड़े थे
अनपढ़ माँ से सुन रक्खे थे हमने सभी ज़बानी

मैं तालाब नहीं हूॅं जो सड़ जाए ठहरे - ठहरे
दरिया - सा ताज़ा रहता है मेरी फ़िक्र का पानी

मैं ही हूँ जिसकी नादानी लगती है चालाकी
मैं ही था जिसकी चालाकी लगती थी नादानी

मैं तेरा नदीम हू और नदीम रहूँगा तेरा
इश्क़ निभाने में ’नदीम’ का कोई नहीं है सानी