भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वर्षा रानी / गिरीश पंकज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाच रही है वर्षा रानी,
यहाँ-वहां बस पानी-पानी ।

बिजली कड़के ज़ोर से,
डर लगता है शोर से ।
लेकिन मोर नाचता कैसे,
चलो, पूछ लें मोर से ।

या बतलाएगी फिर नानी,
नाच रही है वर्षा रानी ।।