भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वर्षा / अमरजीत कौंके

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:42, 10 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |संग्रह=अंतहीन दौड़ / अमरजीत कौंके …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वर्षा जब बाहर होती

तो कैसे निखर जाता
धीरे धीरे आकाश
प्यासी धरती
भीतर तक अघा जाती

वृक्षों के पत्ते
धुल कर हो जाते नए नवेले
पवन सुगंधित होता

काश !
वर्षा ऐसी
कभी इन्सान के
भीतर भी हो पाती.... !!!


मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा