भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वर्ष नया / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार }} कु...)
(कोई अंतर नहीं)

19:47, 9 सितम्बर 2008 का अवतरण

कुछ देर अजब पानी बरसा ।

बिजली तड़पी, कौंधा लपका …

फिर घुटा-घुटा सा, घिरा-घिरा
हो गया गगन का उत्तर-पूरब तरफ़ सिरा ।


बादल जब पानी बरसाये

तो दिखते हैं जो,

वे सारे के सारे दृश्य नज़र आये ।

छप-छप,लप-लप,
टिप-टिप, दिप-दिप,-
ये भी क्या ध्वनियां होती हैं ॥

सड़कों पर जमा हुए पानी में यहां-वहां

बिजली के बल्बों की रोशनियां झांक-झांक

सौ-सौ खंडों में टूट-फूटकर रोती हैं।


यह बहुत देर तक हुआ किया …

फिर चुपके से मौसम बदला
तब धीरे से सबने देखा-

हर चीज़ धुली,

हर बात खुली सी लगती है

जैसे ही पानी निकल गया ।

यह जो आया है वर्ष नया-

वह इसी तरह से खुला हुआ ,

वह इसी तरह का धुला हुआ

बनकर छाये सबके मन में ,

लहराये सबके जीवन में ।


दे सकते हो ?

--दो यही दुआ ।