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वसंत/शिवदीन राम जोशी

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उर बसंत, पुर में बसंत है ।
पुर-पुर में, उर में बसंत है ।।

पात-पात में, ड़ार-ड़ार में ।
विद्यमान रितु सत्य प्यार में ।।
तत्व मूल में फूल-फूल में, रंग महकता स्वर बसंत है ।।
ग्राम-ग्राम में, धाम-धाम में ।
तन में मन में, ब्रह्म राम में ।।
नगर-नगर में, डगर-डगर में, मगन मस्त घर में बसंत हैं ।।
कौम-कौम में, रोम-रोम में ।
धारा धरनी पाताल व्योम में ।।
व्यापक है चहूँ ओर ठौर में, नारायण नर में वसंत है ।।
तन तंत्री के साज-बाज में ।
मधुर-मधुर प्यारी आवाज़ में ।।
कर यकीन शिवदीन सत्य मग,हरियाली हर में बसंत है ।।