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"वसन्त: कोलाज़ / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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‘बामनी’ बया बोली
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फूलों से भरी
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चुनमुन गौरैया
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ध्रती ने की
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सूरज से जो प्रीत
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हँसती जाये
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गुल दाउदी पीत
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चोंच से चुना
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तिनकों का संसार
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सजा घरौंदा
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पाखी-दम्पती ख़ुश
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दानों से भरी
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झूमती हवाओं में
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बाली सोनाली
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ज़रा-सी आहट से
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बाजरा खाती
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गिलहरी भाग ली
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कूका कोकिल
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सहकार वृक्ष पे
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बाग भौंचक्का
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दर्पण देख रही
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नव-वल्लरी
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फूलों के भार झुकी
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हँसता जाता
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निर्जन टीले खड़ा
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एक करील
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सजा रही ॠतु-माँ
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पाकर-गात
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मूँगा-रँग के पात
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किसे बुलाती
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किसलय लपेटे
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अल्प-वसना
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मोहक वन-कन्या
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केशों में सजा
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लाल गुड्हल-फूल
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हँसती उर्वी
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रंगों से सराबोर
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इठला रहीं
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शोखियाँ वसन्त की
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फूलों से भरे
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गलबाँही दे, खड़े
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दो कनेर ये
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आम्र-पल्लव
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बने बंदन वार
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‘घराती’ अमराई
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बावली बनीं
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तितलियाँ सज के
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अगवानी में
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चूनरिया धानी में
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‘वर’ वसन्त
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केसरिया पाग में
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फूलों का ‘जामा’
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बारात को मनाते
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भौंरा हुआ दीवाना
  
 
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15:57, 21 मई 2012 का अवतरण

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वासन्ती भोर
‘बामनी’ बया बोली
पत्तों में छिपी
‘बिटौड़े’ चढ़ गई
फूलों से भरी
तुरई-बेल हरी
चैत आ गया
फिरे खोजती तृन
उतावली में
चुनमुन गौरैया
ध्रती ने की
सूरज से जो प्रीत
हँसती जाये
गुल दाउदी पीत
चोंच से चुना
तिनकों का संसार
सजा घरौंदा
पाखी-दम्पती ख़ुश
दानों से भरी
झूमती हवाओं में
बाली सोनाली
ज़रा-सी आहट से
बाजरा खाती
गिलहरी भाग ली
कूका कोकिल
सहकार वृक्ष पे
बाग भौंचक्का
दर्पण देख रही
नव-वल्लरी
फूलों के भार झुकी
हँसता जाता
निर्जन टीले खड़ा
एक करील
सजा रही ॠतु-माँ
पाकर-गात
मूँगा-रँग के पात
किसे बुलाती
किसलय लपेटे
अल्प-वसना
मोहक वन-कन्या
केशों में सजा
लाल गुड्हल-फूल
हँसती उर्वी
रंगों से सराबोर
इठला रहीं
शोखियाँ वसन्त की
फूलों से भरे
गलबाँही दे, खड़े
दो कनेर ये
आम्र-पल्लव
बने बंदन वार
‘घराती’ अमराई
बावली बनीं
तितलियाँ सज के
अगवानी में
चूनरिया धानी में

‘वर’ वसन्त
केसरिया पाग में
फूलों का ‘जामा’
बारात को मनाते
भौंरा हुआ दीवाना

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