भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह आँसू कह जाते हैं / हिमांशु पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
 
मेरा प्रेम
कुछ बोलना चाहता है ।
कुछ शब्द भी उठे थे, जिनसे
अपने प्रेम की सारी बातें
तुमसे कह देने को
मन व्याकुल था ,
पर जबान लड़खडा गयी।
अन्दर से आवाज आयी
"कोई बाँध सका है
की तुम चले हो बांधने
प्रेम को, शब्दों में ।
ठहर गया मैं ।

प्रश्न था, प्रेम बोलना चाहता है,
अभिव्यक्त होना चाहता है,
पर प्रेम के पास तो कोई भाषा ही नहीं-
मौन है प्रेम ।
तो ऐसी दुविधा में उलझकर
पोर-पोर रो उठे,
आंखों से आंसू झरें
तो आश्चर्य क्या ?
आंसू झर पड़ते हैं, जब
गहरी हो जाती है कोई अनुभूति-
प्रेम की अनुभूति - शब्दातीत।

राह मिल गयी......
जो शब्द नहीं कह पाते
वह आँसू कह जाते हैं।