भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह लड़का-1 / रामकृष्‍ण पांडेय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:08, 17 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकृष्‍ण पांडेय |संग्रह=आवाज़ें /...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर आवाज़ पर
हवा की तरह
दौड़ता हुआ वह लड़का

लट्टू की तरह नाचता है
हर इशारे पर
सुबह से शाम
और शाम से रात तक
इसी तरह
ज़िन्दगी गुज़ारता है
वह लड़का

सुबह होते ही
भट्ठी में कोयले के साथ
सुलगता है
दिन भर चाय की पत्ती के साथ
उबलता है
डबलरोटी की तरह
सिंकता है
और आधी रात के बाद
राख की तरह
ढेर हो जाता है वह लड़का

हर आवाज़ पर
हवा की तरह
दौड़ता हुआ वह लड़का