भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वात्सल्य / विनय सिद्धार्थ

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:38, 16 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय सिद्धार्थ |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन में उमंग लिए पुत्र को वह संग लिए खुशियों के रंग लिए झूमती चली गई
मेले में त्यौहार में ममता कि धार में पुत्र के प्यार में वह डूबती चली गई
थैला वह साथ लिए पुत्र को भी हाथ लिए रुक-रुक बैठ-बैठ घूमती चली गई
सूर्य के प्रचंड को वह कर के खंड-खंड उसे ममता कि छांव में वह चूमती चली गई