भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वापसी / यानिस रित्सोस / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:02, 14 अक्टूबर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यानिस रित्सोस |अनुवादक=मंगलेश डब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबसे पहले प्रतिमाएँ विदा हुईं । उसके कुछ ही बाद पेड़
लोग और पशु / जगह
पूरी तरह वीरान हो गई । एक हवा आई । सड़कों पर
अख़बार उड़ते रहे और काँटेदार टहनियाँ ।
रात में सड़कों पर स्वेच्छा से बत्तियाँ जल उठीं ।
एक आदमी ख़ुद-ब-ख़ुद लौट आया; उसने चारों ओर देखा,
फिर एक चाबी निकाली, और उसे ज़मीन में इस तरह दबाया
गोया उसे किसी ज़मींदोज़ हाथ को थमा रहा हो ।
या एक पेड़ लगा रहा हो । बाद में उसने संगमरमर की सीढ़ियाँ
चढ़ीं और शहर को देखा ।
प्रतिमाएँ एक-एक करके, सावधानी के साथ लौट आईं ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल