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वितान / अर्चना कुमारी

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<poem>भूलक्कड़ हो रहा है दिन
तपते छत के नीचे
सुनने जैसी तरलताओं में
अंकन की दृश्यता का गीत है
तुम हो.........
जब कहीं छूट जाएँ शब्द
केवल इतना याद रखना
कि समवेत स्वर में कहा है
प्रेम हमने .......
तुम्हारे दीर्घ में वितान पा रहा है
मेरा ह्रस्व ......!!!</poem>
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