भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विदाभास / रामदरश मिश्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:23, 24 सितम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फिर हवा बहने लगी कहने लगीं वनराइयाँ
काँपने फिर-फिर लगीं ठहरी हुई परछाइयाँ।

थरथराने से लगे कुछ पंख अपने नीड़ में
एक छाया छू मुझे उड़, खो गई किसी भीड़ में
ताल फिर हिलने लगा, फटने लगी फिर काइयाँ।

एक भटकी नाव धारा पर निरखती दीठियाँ
प्रान्तरों को चीरतीं फिर इंजनों की सीटियाँ
अब कहाँ ले जाएंगी यायावरी तनहाइयाँ।

भीत पर अंकित दिनों के नाम फिर हिलने लगे
डायरी के पृष्ठ कोरे फड़फड़ा खुलने लगे
उभरने दृग में लगीं पथ की नमी गहराइयाँ।