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विदा के बाद / सोम ठाकुर

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बिखरे पीले चावल कल के
कमरों में ख़ालीपन आज .
आँखों में कल ,
केवल कल --
पंखों की हवा और उड़ते फीते
हरे , भूरे, लाल
पाओ से कुचलते कनेर ,
पौली - छत - आँगन आते --जाते
उलझाते नज़रों के जाल
गंधाती सांसो के ढेर ,

टूट गया कल -
टुकड़े -टुकड़े ,
सर पर से गुज़र गया
रूपहला जहाज़
छज्ज़ों पर खालीपन आज .
बिखरे पीले चावल कल के
कमरों में ख़ालीपन आज .