भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विद्यार्थी बिस्मिल की भावना / राम प्रसाद बिस्मिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देश की ख़ातिर मेरी दुनिया में यह ताबीर<ref>कष्ट की कल्पना</ref> हो
हाथ में हो हथकड़ी, पैरों पड़ी ज़ंजीर हो

सर कटे, फाँसी मिले, या कोई भी तद्बीर<ref>पेशबन्दी</ref> हो
पेट में ख़ंजर दुधारा या जिगर में तीर हो

आँख ख़ातिर तीर हो, मिलती गले शमशीर हो
मौत की रक्खी हुई आगे मेरे तस्वीर हो

मरके मेरी जान पर ज़ह्मत<ref>क्लेश</ref> बिला ताख़ीर<ref>अविलम्ब</ref> हो
और गर्दन पर धरी जल्लाद ने शमशीर हो

ख़ासकर मेरे लिए दोज़ख़ नया तामीर<ref>निर्माण</ref> हो
अलग़रज़<ref>अधिक क्या कहूँ, किंबहुना</ref> जो कुछ हो मुम्किन वो मेरी तहक़ीर<ref>दुर्दशा</ref> हो

हो भयानक से भयानक भी मेरा आख़ीर हो
देश की सेवा ही लेकिन इक मेरी तक़्सीर<ref>गुनाह, अपराध</ref> हो

इससे बढ़कर और भी दुनिया में कुछ ताज़ीर<ref>सज़ा, दण्ड, परिणाम</ref> हो
मंज़ूर हो, मंज़ूर हो मंज़ूर हो, मंज़ूर हो

मैं कहूँगा ’राम’ अपने देश का शैदा हूँ मैं
फिर करूँगा काम दुनिया में अगर पैदा हूँ मैं

शब्दार्थ
<references/>