भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विप्लव गान / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:55, 26 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=धार के इधर उधर / हरिवंशर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जहाँ सोचा था वन के बीच
मिलेंगे खिलते कोमल फूल,
वहाँ क्या देख रहा हूँ आज
कि छाये तीखे शूल-बबूल,
कभी अंकुरित करूँगा सृष्टि,
अभी तो अंगारों की वृष्टि।

जहाँ सोचा था उपवन बीच
सजी होगी रस-रंग-बहार,
वहाँ क्या देख रहा हूँ आज
कि छाए झाड़ और झंखाड़,
कभी करना होगा श्रृंगार
अभी तो करना है संहार!

जहाँ सोचा था मधुवन बीच
सुनूँगा कोकिल पंचम-तान,
वहाँ पर कटु-कर्कश-स्वर काग
प्रतिक्षण खाए जाते कान,
कभी डोलेगी मधु-वातास
अभी तो उठता है उंचास!

बनाने में बिगड़े को व्यर्थ
बहाना आँसू लोहू स्वेद,
हमें करना साहस के साथ
प्रथम भूलों का मूलोच्छेद,
कभी करना होगा निर्माण
अभी तो गाता विप्लव गान!