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विरोधाभास / त्रिलोचन

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|संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन
}}
[[Category:सॉनेट]]
एक विरोधाभास त्रिलोचन है. मै उसका<br>
रंग-ढंग देखता रहा हूँ. बात कुछ नई<br>
नहीं मिली है.घोर निराशा में भी मुसका<br>
कर बोला, कुछ बात नहीं है अभी तो कई<br><br>
और तमाशे मैं देखुँगा. मेरी छाती<br>
वज्र की बनी है, प्रहार हो, फिर प्रहार हो,<br>
बस न कहूँगा. अधीरता है मुझे न' भाती<br>
दुख की चढी नदी का स्वाभाविक उतार हो.<br><br>
संवत पर सवत बीते, वह कहीं न टिहटा,<br>
पाँवों में चक्कर था. द्रवित देखने वाले<br>
थे. परास्त हो यहाँ से हटा, वहाँ से हटा,<br>
खुश थे जलते घर से हाथ सेंकने वाले.<br><br>
औरों का दुख दर्द वह नहीं सह पाता है.<br>
यथाशक्ति जितना बनता है कर जाता है.