भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वाम हैं
दिशा हैं वे
वे हड्डियों को डंडे की तरह
और अपनी देह को झंडे की तरह
कि जनता जब कष्ट से पागल हो कर
उनके साथ आएगी
राजपद को वे जनहित मे
सामूहिक तौर पर अस्वीकृत करेंगे
और उस अस्वीकार की
डुगडुगी भी नही बजायेंगे
हजारसाला गुलामी के बाद
वे बचे हुए कंठ हैं
जहां सरस्वती की तरहस्मृति तरहस्मृति बसती है
इसपर चिंतित मत होओ
कि वे केंद्र मे नहीं रहे
वे भीड़ को जनता बनाने की
कोशिश मे लगे हैं
ध्रुवों की बर्फ में तुम कहाँ उन्हें ढूंढ रहे
कब के वहां से प्रयाण कर चुके वे