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खुला छोड़ देती हैं लड़कियों को
उदास होने के लिए!...
लड़कियाँ उदास नहीं रहेंगी,
कम-अजसे-कम उन बातो के लिए तो नहीं[[कड़ी शीर्षक]]
जिनके लिए रही थीं वे
या उनकी माँ
या उनकी माँ की माँ...
छोड़ भी देती हैं वे उन्हें अकेला
अपने हाल पर!...
माँएँ खुला छोड़ देती हैं उन्हें
एक उम्र के बाद...
और लड़कियाँ
डरतेडरती-झिझकते झिझकती आ खड़ी होती हैं
अपने फ़ैसलों के रू-ब-रू
पूछती हैं अपने फ़ैसलों से,
तुम्हीं सुख हो?
और घबराकर उतर आती हैं
सुख की सीढियाँ...
जो नहीं रहेगी उनके साथ
सुख के किसी भी क्षण में!...
माँएँ क्या जानती थीं?
जहाँ छोड़ा था उन्होंने
अचानक
बिल्कुल नए सिरे से!...
लांघ जाती हैं वह उम्र
जहाँ खुला छोड़ देती थीं माँएँ!.