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01:05, 25 जून 2011 का अवतरण


वीणा को यों ही हाथ में थामे हुए हैं हम
फिर भी सुना के मौन सभा में हुए हैं हम

है प्यार यह न खेल ही फूलों का जान लें
मुट्ठी में कसके आग को थामे हुए हैं हम

जो देखते नहीं हैं पलटकर हमारी ओर
क्या-क्या न उनकी एक अदा में हुए हैं हम

एक जान के दुश्मन को बनाया है दिल का दोस्त
बुझते दिए को लेके हवा में हुए हैं हम

जिसपर नज़र पडी न बहारों की आजतक
ऐसे भी एक गुलाब गया में हुए हैं हम