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"वीणा को यों तो हाथ में थामे हुए हैं हम / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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है प्यार यह न खेल ही फूलों का जान लें | है प्यार यह न खेल ही फूलों का जान लें |
02:19, 12 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
वीणा को यों तो हाथ में थामे हुए हैं हम
फिर भी सुनाके मौन सभा में हुए हैं हम
है प्यार यह न खेल ही फूलों का जान लें
मुट्ठी में कसके आग को थामे हुए हैं हम
जो देखते नहीं हैं पलटकर हमारी ओर
क्या-क्या न उनकी एक अदा में हुए हैं हम
एक जान के दुश्मन को बनाया है दिल का दोस्त
बुझते दिये को लेके हवा में हुए हैं हम
जिसपर नज़र पडी न बहारों की आजतक
ऐसे भी एक गुलाब गया में हुए हैं हम