भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वीणा को यों तो हाथ में थामे हुए हैं हम / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:22, 9 जुलाई 2011 का अवतरण
वीणा को यों तो हाथ में थामे हुए हैं हम
फिर भी सुना के मौन सभा में हुए हैं हम
है प्यार यह न खेल ही फूलों का जान लें
मुट्ठी में कसके आग को थामे हुए हैं हम
जो देखते नहीं हैं पलटकर हमारी ओर
क्या-क्या न उनकी एक अदा में हुए हैं हम
एक जान के दुश्मन को बनाया है दिल का दोस्त
बुझते दिये को लेके हवा में हुए हैं हम
जिसपर नज़र पडी न बहारों की आजतक
ऐसे भी एक गुलाब गया में हुए हैं हम