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"वीर जवान / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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न विचलित होता
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अश्रु बहाता,
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न कभी भी रोता;
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मातृभूमि के
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उर- माल सजाने,
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गौरव- मोती
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साहस के धागे में
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सदा पिरोता
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विजय-इतिहास
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अपने सारे
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यह बलि चढ़ाता
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रक्त-संबंध
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है राष्ट्र-परिवार
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इसका सारा,
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भारत का महान
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'''वीर जवान'''
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कविता नित करे
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दण्डवत प्रणाम.
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16:40, 18 जुलाई 2018 के समय का अवतरण


लौहस्तम्भ-सा
खड़ा एक मानव
हाड़ कँपाती
जो शीत- शिशिर में
बर्फीली हवा,
रात- दोपहर में
चुभती धूप
या अंध तिमिर में
सहता जाता
इसमें भी तो हैं ही
संवेदनाएँ
इसे भी तड़पाती
हैं वेदनाएँ
यद्यपि, कालगति
किन्तु, तथापि
न विचलित होता
अश्रु बहाता,
न कभी भी रोता;
मातृभूमि के
उर- माल सजाने,
गौरव- मोती
साहस के धागे में
सदा पिरोता
विजय-इतिहास
अपने सारे
यह बलि चढ़ाता
रक्त-संबंध
है राष्ट्र-परिवार
इसका सारा,
भारत का महान
वीर जवान
कविता नित करे
दण्डवत प्रणाम.
-0-