भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वेगा भी जिकुड़ा ये टीस रे उमर भर / मोहित नेगी मुंतज़िर

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:48, 15 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहित नेगी मुंतज़िर |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
वेगा भी जिकुड़ा ये टीस रे उमर भर।
नोकर्या बाना ऊ गों नि गे उमर भर।

योक कोलू खले ऊँन बीमारी मां
ऊँ ते बस बोनो य्वी बानु व्हे उमर भर ।

मर्दि दों विंगू भी अपणु जन क्वी नि व्हे
जैन केकू कभी कुछ नि ख्वे उमर भर ।

आज छोरूँन धक्का मारी भेर के
निर्भगी बोडी स्या सदनी रवे उमर भर।