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"वैराग्य के सभी सूत्र मैंने घोट डाले / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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पर प्राणों की जलन बुझ नहीं पाती है.
 
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हीरे को ज्यों-ज्यों छीलता हूँ,
 
हीरे को ज्यों-ज्यों छीलता हूँ,
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मिसरी को जितना ही धोता हूँ
 
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मधुरता उतनी ही बढ़ती जाती है.\
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नाव तो कहाँ से कहाँ चली आयी   
 
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पर नाविक अभी तीर पर ठहरा है  
 
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ज्यों-ज्यों भुजायें शिथिल हुई जाती है
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लगता है, सागर अधिकाधिक गहरा है  
 
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01:55, 17 जुलाई 2011 का अवतरण


वैराग्य के सभी सूत्र मैंने घोट डाले 
फिर भी मन की यह मीठी पीर नहीं जाती है.
गंगा की धारा में अगणित गोते लगा लिए,
पर प्राणों की जलन बुझ नहीं पाती है.
हीरे को ज्यों-ज्यों छीलता हूँ,
उस पर और भी चमक चढ़ती जाती है,
मिसरी को जितना ही धोता हूँ
मधुरता उतनी ही बढ़ती जाती है.
नाव तो कहाँ से कहाँ चली आयी   
पर नाविक अभी तीर पर ठहरा है
ज्यों-ज्यों भुजायें शिथिल हुई जाती हैं
लगता है, सागर अधिकाधिक गहरा है