भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
"[[वो कभी धूप कभी छाँव लगे / कैफ़ी आज़मी]]" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
वो कभी धूप कभी छाँव लगे।मुझे क्या-क्या न मेरा गाँव लगे ।
किसी पीपल के नीचे तले जा बैठे अब भी अपना जो दांव कोई दाँव लगे।
एक रोटी के तात'अक्कुब <ref>पीछा करना</ref> में चला हूँ इतना की मेरा पाँव किसी और ही का पाँव लगे ।
रोटि-रोज़ी की तलब जिसको कुचल देती हैउसकी ललकार भी एक सहमी हुई म्याँव लगे । जैसे देखात देहात में लू लगते लगती है चरवाहों कोबम्बई में यूँ ही तारों की हँसी छाँव लगे।</poem>{{KKMeaning}}